बैतूल:--तीन साल से सूख रही फसलें, किसानों ने जनसुनवाई में दी आंदोलन की चेतावनी
तीन साल से सूख रही फसलें, किसानों ने जनसुनवाई में दी आंदोलन की चेतावनी
पाइपलाइन की गहराई से लेकर ओएमएस की सुरक्षा तक अनदेखी, 13 हजार किसानों ने मांगा न्याय
किसानों ने कहा - बिना काम पूरा हुए न जारी हो ठेकेदार को सीसी, कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन
बैतूल। जिले के पारसडोह जलाशय की सूक्ष्म सिंचाई परियोजना में हो रही अनियमितताओं से त्रस्त होकर 42 गांवों के लगभग 13 हजार किसानों ने मंगलवार को जिला जनसुनवाई में कलेक्टर महोदय से मिलकर अपना दुखड़ा सुनाया और ज्ञापन सौंपा। किसानों ने आरोप लगाया कि ठेकेदार और विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के कारण उनके खेतों में तीन साल से पानी नहीं पहुंच पाया है, जिससे उनकी फसलें सूख गईं। इस हालात में अब किसान मुआवजे की मांग कर रहे हैं और भविष्य में परियोजना के सही ढंग से संचालित होने की गारंटी चाहते हैं।
ज्ञापन में किसानों ने स्पष्ट किया कि पारसडोह सिंचाई परियोजना का काम अभी अधूरा है और ठेकेदार द्वारा निर्धारित गहराई पर पाइपलाइनें नहीं गाड़ी गई हैं। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि विभाग ने ठेकेदार को बिना काम पूरा हुए कंपलीशन सर्टिफिकेट (सीसी) जारी किया या परियोजना को हैंडओवर किया, तो वे इसे प्रशासन की साजिश मानते हुए विरोध करेंगे। किसानों का कहना है कि इस मामले में ठेकेदार के साथ ही विभाग के अधिकारी भी दोषी होंगे।
प्रशासन से तत्काल हस्तक्षेप की मांग
पूर्व भाजपा युवा मोर्चा जिला अध्यक्ष भवानी गावंडे, किसान नेता मकरध्वज सूर्यवंशी, गुलाब देशमुख (आस्टा), चिंताराम हारोडे (काजली), अलख निरंजन बरोदे (मासोद), और जिला पंचायत सदस्य उर्मिला गव्हाडे सहित अन्य किसानों ने मंगलवार को बैतूल कलेक्टर जनसुनवाई में ज्ञापन सौंपा। किसानों ने पारसडोह जलाशय की सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली में हो रही अनियमितताओं पर कड़ा विरोध जताते हुए विभागीय अधिकारियों और ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। उन्होंने प्रशासन से तत्काल हस्तक्षेप करते हुए किसानों की समस्याओं का समाधान करने की अपील की।
किसानों ने बताया कि वे लगातार तीन वर्षों से रबी की फसलें लगा रहे हैं, लेकिन सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है। वर्ष 2021-22, 2022-23 और अब 2023-24 में भी गेहूं की फसल सिंचाई के अभाव में सूख गई। इसके लिए उन्होंने कई बार विभागीय अधिकारी शिवकुमार नागले (उपयंत्री), मनोज चौहान (अनुविभागीय अधिकारी) और विपिन वामनकर (कार्यपालन यंत्री) से संपर्क किया, लेकिन उन्हें केवल आश्वासन मिला। ठेकेदार के अधिकृत अधिकारी देवेश नागले ने भी किसानों को बार-बार आश्वासन दिया, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला।
किसानों ने जनसुनवाई में कहा कि उन्हें सीएम हेल्पलाइन और अन्य माध्यमों से भी कोई राहत नहीं मिली। अधिकारियों ने केवल आश्वासन देकर मामला बंद करवा दिया, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा। किसानों का कहना है कि प्रति हेक्टेयर लगभग 95 हजार रुपये का नुकसान हुआ है, जिसमें जुताई, बीज और खाद का खर्च भी शामिल है। इसलिए अब वे प्रति हेक्टेयर 2,85,000 रुपये मुआवजे की मांग कर रहे हैं।
विभाग और ठेकेदार पर गंभीर आरोप
किसानों ने विभाग और ठेकेदार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि परियोजना के तहत बिछाई गई पाइपलाइनों को तय गहराई में नहीं रखा गया, जिससे खेतों की जुताई के दौरान पाइपलाइनें टूट जाती हैं। ओएमएस चक पेटी का बेस कंक्रीट नहीं किया गया, जिससे उनकी सुरक्षा खतरे में है। इसके अलावा, ओएमएस की सुरक्षा के लिए किसी भी जल मित्र या एफआरओ की नियुक्ति नहीं की गई है।
किसानों ने कहा कि ठेकेदार और विभागीय अधिकारियों की लापरवाही से योजना के तहत 42 गांवों के एक भी किसान को समय पर सिंचाई का पानी नहीं मिल पाया। उन्होंने मांग की कि योजना का सही ढंग से संचालन सुनिश्चित करने के लिए परियोजना का निरीक्षण और तकनीकी परीक्षण किया जाए।
मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो करेंगे उग्र आंदोलन
किसानों ने कलेक्टर से यह भी कहा कि यदि उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो वे उग्र आंदोलन करेंगे। उन्होंने कहा कि यह परियोजना, जो एक समय में किसानों के लिए वरदान मानी जा रही थी, अब उनकी पीड़ा का कारण बन गई है। विश्व की सर्वश्रेष्ठ सिंचाई प्रणाली कही जाने वाली पारसडोह परियोजना, अगर ऐसे ही चली, तो बंद होने की कगार पर पहुंच जाएगी और इसके लिए पूरी तरह से प्रशासन जिम्मेदार होगा।